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10 mysteries of the world that have not been solved till date

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  why  Babylonian army attacked Jerusalem.  In 587 BC the Babylonian army attacked Jerusalem. In this attack the city of Jews was completely destroyed. Along with this, their first temple was also demolished. What happened to the Ark of the Covenant kept in the temple during that time? It is still a mystery. The Ark of the Covenant contained the books of the 10 religious orders. There is still a big question that who took the Ark of Covenant, where did it go? There is no evidence of this. Some people believe that the Ark of the Covenant was taken away by the Babylonian army after capturing Jerusalem, while others believe that it was hidden somewhere before the attack. When the Messiah returns, the Ark of the Covenant will be found. It is also believed that the Ark of the Covenant was destroyed by the Babylonian army.  2 The truth about the Hanging Gardens of Babylon   Whether there really were hanging gardens in Babylon 2000 years ago is still a mystery. 250 BC Many historians have men

नीम करोली महराज का जीवन

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नीम करोली बाबा का जीवन और गुप्त रहस्य  बाबा का प्रारंभिक जीवन  लक्ष्मण नारायण शर्मा का जन्म 1900 के आसपास भारत के उत्तर प्रदेश के फिरोजाबाद जिले के अकबरपुर गाँव में एक धनी ब्राह्मण परिवार में हुआ था।  11 वर्ष की उम्र में अपने माता-पिता द्वारा विवाह किये जाने के बाद, उन्होंने एक घुमंतू साधु बनने के लिए घर छोड़ दिया । बाद में वह अपने पिता के अनुरोध पर, एक व्यवस्थित वैवाहिक जीवन जीने के लिए घर लौट आए। वह दो बेटों और एक बेटी के पिता बने।  महराज  ( नीम करोली)का जीवन और उनका आध्यत्म से जुड़ाव  नीम करोली बाबा, जिन्हें उस समय बाबा लक्ष्मण दास (जिन्हें "लक्ष्मण दास" भी कहा जाता है) के नाम से जाना जाता था, उन्होंने 1958 में अपना घर छोड़ दिया। राम दास एक कहानी बताते हैं कि बाबा लक्ष्मण दास बिना टिकट के ट्रेन में चढ़ गए और कंडक्टर ने ट्रेन रोकने का फैसला किया। और फर्रुखाबाद जिले ( यूपी) के नीम करोली गांव में नीम करोली बाबा को ट्रेन से उतार दिया). बाबा को ट्रेन से उतारने के बाद कंडक्टर को पता चला कि ट्रेन दोबारा नहीं चलेगी. ट्रेन शुरू करने के कई प्रयासों के बाद, किसी ने कंडक

पतंग

उड़ने से पहले फड़फड़ाती  है , ऊंचा पहुंच कर अपना रंग दिखलाती है । है अगर पकड़ मजबूत साधने वाले की , ढील पाकर ऊंचा और ऊंचा उड़ जाती । खुद आसमा में है जब तक , तब तमासबीनों  के लिए तमासा बन जाती है ।। है डोर में ताकत ,लेकिन खुद मद से चूर हो जाती है । जुदा कर किसी को , किसी अपने से आसमान में कलाबाजियां दिखती है ।। भूल है उसकी , छलावे की है ताकत , झूठा है ये ऊंचाइयों का छूना ! जिस अहम में वो काट रही है अपनो को ,चढ़ती जा रही मंजिल पर मंजिल अपने सपनों  को । जितना लोगो को काट रही है , उतना उसकी डोर भी कटती जा रही है । ये बात उस आसमा में बैठी, अभिमानी को समझ ना आ रही है । बात तो पतंग की कर रहा हूं ,पर न जाने क्यों  पतंग में भी इंसान की शख्सियत नज़र आ रही है। अपनो को गिराकर ये भी तो उठता जाता है ,  गिरता ऊंचाई से  , तो किसी अपने को ही संभालता हुआ पता है । संभाल तो लेता है वो , पर क्या उसमे पहले जैसा अब अपना पन पता है वो । पतंग में देखा जाए कुछ ऐसा ही होता , उड़ती तो आसमा में है दोबारा , पर बीच में कही गांठ पड़ जाती है । । ...sVs...

Kuch mithi batein

Ek daur tha jab log samjh nahi ate the  ek vakt tha log samjh nahi pate the  Bada muskil hota hai , tut kar bikhar kar  fir se sambhl jana , logo ke haste chehre dekh kar bhi Na ghabrana  Muskil rahon me bhi uhi muskurate hue chalte jana , Kadak dopahar ki dhoop me chhav milne par bhi na ruk jana bus lakshay par najr tikaye rakna  Aur age padhte jana . Dikhenge hajar chere , har chehre ko dekh ke muskurana  Par kisi ki muskurahat par khud ke sapne ko na bhool Jana.  Bus o musafir tu uhi chalte jana  Mile jo bhi rah me use sathi banana  Ho sake to badh himmat use bhi uski manjil ki rah dikhna  E saurbh tu apni pahchan logo ko uhi batana  Mere musafir tu chalte jana  Muskil hai lekin na mumkin  nahi  Kathin  hai par har jana nahi  Mohabbat me pad kar  apni Manjil bhool Jana nahi  Kuch vakt boora hai isse dar  Kar har jana nahi  Chal tu ......... Rah me hajar dilkash najare aye , Kisi par najar thahrana nahi  O mere musafira Manjil bhool Jana nahi.  ...sVs...

जी लो या जीत लो

हर हार में  हार नहीं होती  की गई मेहनत बेकार नहीं होती  कुछ वक्त बादल  ढक सकता है सूरज की चमक  इससे चमक गुमनाम नही होती ।।

मुसाफ़िर

  चल मुसाफ़िर तुझे दूर जाना है ! रात की गहराइयों में खोकर , ना जाने किस किस सपने को अपना बनाना है ।  अल्फाजों की रंगत से न जाने और कितने पन्नो को रंगीन बनाना है ।। चल मुसाफ़िर तुझे दूर तक जाना है ! मुस्किले तो आती रहेंगी , क्या इनसे तुझे हार जाना है ।  अरे हालातो से भी तो उबर कर आना है ।। उठ जा ओ मुसाफिर ,तुझे दूर तक जाना है ! तू सौरभ है इस उपवन का , तुझे इस  जग को भी तो महकाना है  । गगन चूमती इन इमारतों पर अपना भी तो ठिकाना बनाना है । चल मुसाफ़िर दूर जाना है ! हर रोज एक एक कदम आगे बढ़ाना है । थकने न दे खुद को ऐसे  लड़ते हुए खुद से आगे बढ़ जाना  हैं। । चल ओ तुझे दूर तक जाना है !! पहले कदम पर मन तुझे बहलाएगा , तुझे मन को  बहलाना है । सोच तेरे पीछे आने वालों के रास्तों को भी तो तुझे आसान बनाना है ।। कविता में अब प्रेम न लिख , कविता को ही प्रेम बनाना है ।।। उठ मुसाफ़िर तुझे दूर  जाना है ! हर हार का जश्न मनाना है ,राह पर पड़े कंकड़ को चूम कर माथे पर लगाना है । कंकड़ कंकड़ जोड़ कर ,तुझे आशियाना बनाना है ।। अरे क्या कठिन है इसमें ,ये कहते हुए आगे बढ़ जाना है ।।। चल मुसाफ़िर तुझे दूर तक जाना