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The Ghost

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 "Unraveling the Mysteries of 'The Ghost'" Everyone loves a good ghost story. The eerie feeling of being watched, the sudden chill down your spine, and the unexplainable occurrences that seem to have no logical explanation – these are all elements that make for a captivating tale. But when it comes to the concept of "the ghost," there is much more to unpack than just a spooky tale. Over the years, the idea of a ghost has taken on many forms and interpretations. From friendly spirits to vengeful apparitions, from lost souls to demons – the ghost has been depicted in various ways in literature, movies, and even real-life encounters. But what really is a ghost? Is it just a figment of our imagination or is there more to it? Let's delve into the mysteries of 'the ghost' and unravel its true meaning. First and foremost, it is important to understand that the concept of a ghost is deeply rooted in human beliefs and culture. The belief in sp

नीम करोली महराज का जीवन

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नीम करोली बाबा का जीवन और गुप्त रहस्य  बाबा का प्रारंभिक जीवन  लक्ष्मण नारायण शर्मा का जन्म 1900 के आसपास भारत के उत्तर प्रदेश के फिरोजाबाद जिले के अकबरपुर गाँव में एक धनी ब्राह्मण परिवार में हुआ था।  11 वर्ष की उम्र में अपने माता-पिता द्वारा विवाह किये जाने के बाद, उन्होंने एक घुमंतू साधु बनने के लिए घर छोड़ दिया । बाद में वह अपने पिता के अनुरोध पर, एक व्यवस्थित वैवाहिक जीवन जीने के लिए घर लौट आए। वह दो बेटों और एक बेटी के पिता बने।  महराज  ( नीम करोली)का जीवन और उनका आध्यत्म से जुड़ाव  नीम करोली बाबा, जिन्हें उस समय बाबा लक्ष्मण दास (जिन्हें "लक्ष्मण दास" भी कहा जाता है) के नाम से जाना जाता था, उन्होंने 1958 में अपना घर छोड़ दिया। राम दास एक कहानी बताते हैं कि बाबा लक्ष्मण दास बिना टिकट के ट्रेन में चढ़ गए और कंडक्टर ने ट्रेन रोकने का फैसला किया। और फर्रुखाबाद जिले ( यूपी) के नीम करोली गांव में नीम करोली बाबा को ट्रेन से उतार दिया). बाबा को ट्रेन से उतारने के बाद कंडक्टर को पता चला कि ट्रेन दोबारा नहीं चलेगी. ट्रेन शुरू करने के कई प्रयासों के बाद, किसी ने कंडक

मुसाफ़िर

  चल मुसाफ़िर तुझे दूर जाना है ! रात की गहराइयों में खोकर , ना जाने किस किस सपने को अपना बनाना है ।  अल्फाजों की रंगत से न जाने और कितने पन्नो को रंगीन बनाना है ।। चल मुसाफ़िर तुझे दूर तक जाना है ! मुस्किले तो आती रहेंगी , क्या इनसे तुझे हार जाना है ।  अरे हालातो से भी तो उबर कर आना है ।। उठ जा ओ मुसाफिर ,तुझे दूर तक जाना है ! तू सौरभ है इस उपवन का , तुझे इस  जग को भी तो महकाना है  । गगन चूमती इन इमारतों पर अपना भी तो ठिकाना बनाना है । चल मुसाफ़िर दूर जाना है ! हर रोज एक एक कदम आगे बढ़ाना है । थकने न दे खुद को ऐसे  लड़ते हुए खुद से आगे बढ़ जाना  हैं। । चल ओ तुझे दूर तक जाना है !! पहले कदम पर मन तुझे बहलाएगा , तुझे मन को  बहलाना है । सोच तेरे पीछे आने वालों के रास्तों को भी तो तुझे आसान बनाना है ।। कविता में अब प्रेम न लिख , कविता को ही प्रेम बनाना है ।।। उठ मुसाफ़िर तुझे दूर  जाना है ! हर हार का जश्न मनाना है ,राह पर पड़े कंकड़ को चूम कर माथे पर लगाना है । कंकड़ कंकड़ जोड़ कर ,तुझे आशियाना बनाना है ।। अरे क्या कठिन है इसमें ,ये कहते हुए आगे बढ़ जाना है ।।। चल मुसाफ़िर तुझे दूर तक जाना