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नीम करोली महराज का जीवन

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नीम करोली बाबा का जीवन और गुप्त रहस्य  बाबा का प्रारंभिक जीवन  लक्ष्मण नारायण शर्मा का जन्म 1900 के आसपास भारत के उत्तर प्रदेश के फिरोजाबाद जिले के अकबरपुर गाँव में एक धनी ब्राह्मण परिवार में हुआ था।  11 वर्ष की उम्र में अपने माता-पिता द्वारा विवाह किये जाने के बाद, उन्होंने एक घुमंतू साधु बनने के लिए घर छोड़ दिया । बाद में वह अपने पिता के अनुरोध पर, एक व्यवस्थित वैवाहिक जीवन जीने के लिए घर लौट आए। वह दो बेटों और एक बेटी के पिता बने।  महराज  ( नीम करोली)का जीवन और उनका आध्यत्म से जुड़ाव  नीम करोली बाबा, जिन्हें उस समय बाबा लक्ष्मण दास (जिन्हें "लक्ष्मण दास" भी कहा जाता है) के नाम से जाना जाता था, उन्होंने 1958 में अपना घर छोड़ दिया। राम दास एक कहानी बताते हैं कि बाबा लक्ष्मण दास बिना टिकट के ट्रेन में चढ़ गए और कंडक्टर ने ट्रेन रोकने का फैसला किया। और फर्रुखाबाद जिले ( यूपी) के नीम करोली गांव में नीम करोली बाबा को ट्रेन से उतार दिया). बाबा को ट्रेन से उतारने के बाद कंडक्टर को पता चला कि ट्रेन दोबारा नहीं चलेगी. ट्रेन शुरू करने के कई प्रयासों के बाद, किसी ने कंडक

रण

खुद के रण में, मैं खुद, विचलित हूँ दिया तो समय समर फुक है युद्ध का है घोर अधेरा, इन अधेरो में में वितलित दूँ चल जाऊँगा तपते अंगारो पर, अगर विजय पथ उस ओर जाता है इस रण में सिर्फ विजय चाहिए ये मन को भाता है मन घायल है, मन्थन अभी भी चल रहा देख खुद के सजाए रण में सौरभ आज जल रहा है. जिस ओर कदम बढ़ाता है, जीत के सन्मुख होके भी पूरीजीत न पाता है। क्या क्या युद्ध कलाओं निपुण न था. वो या मंत्र संधान में क गलती हुई है हैं योनि राक्षस की खुद को जीता मानव बनाया है. या फिर अधूरा ग्यान था जिससे हार की, फलती हूँ उससे लड़ता वो हर क्षण मन में बोझ सा ढोता है हर हार के बाद किरदार खराब होता है हाँ ये सौरभ भी रोता है। किसे तो अपनी त्यपा बतलाए, किये मे थे किस-किस को लो. ये किस्मत के खेल वाली कथा सुनाए। उससे बेहतर है तो अभ अनुधार हो बहाए) में ही वह जाए।

Kuch mithi batein

Ek daur tha jab log samjh nahi ate the  ek vakt tha log samjh nahi pate the  Bada muskil hota hai , tut kar bikhar kar  fir se sambhl jana , logo ke haste chehre dekh kar bhi Na ghabrana  Muskil rahon me bhi uhi muskurate hue chalte jana , Kadak dopahar ki dhoop me chhav milne par bhi na ruk jana bus lakshay par najr tikaye rakna  Aur age padhte jana . Dikhenge hajar chere , har chehre ko dekh ke muskurana  Par kisi ki muskurahat par khud ke sapne ko na bhool Jana.  Bus o musafir tu uhi chalte jana  Mile jo bhi rah me use sathi banana  Ho sake to badh himmat use bhi uski manjil ki rah dikhna  E saurbh tu apni pahchan logo ko uhi batana  Mere musafir tu chalte jana  Muskil hai lekin na mumkin  nahi  Kathin  hai par har jana nahi  Mohabbat me pad kar  apni Manjil bhool Jana nahi  Kuch vakt boora hai isse dar  Kar har jana nahi  Chal tu ......... Rah me hajar dilkash najare aye , Kisi par najar thahrana nahi  O mere musafira Manjil bhool Jana nahi.  ...sVs...

आग

वो तूफानों में पलते जा रहे हैं , वो आग पर भी चलते जा रहें हैं । खुदा भी नज़र अंदाज कर नही सकता , इन दियालो को !  जो दूसरों को रोशन करने के लिए खुद जलते जा रहें हैं ।। ...sVs...