इश्क की बेईमानी

 डूब गया जबसे वो , उनके अधरो में ।
डूब गई नयैया ,उसकी अधर में ।
बीता काल उसका ,उसकी नज़रों में 
कभी मजा ले ना पाया , सफरों में ।
जाने क्या दिखता था उस हसी के चेहरे पर ,
बीता दिन बीती रातें बस उन्ही के सपनो में ।।
चलते ,उठते , गाते, गुनगुनाते वो गाता रहता , उन्ही के किस्से अपनो में । 

छूट गया सपना , उस झूठे सपने में अपना ।
मिला ना वो झूठा सपना , जिसका अनूठा किस्सा सुन 
हस पड़ा मेरा हर अपना ।।


जब सच छोड़ , झूठ देख मन ललचाया था । 
अरे ओ निक्कमे क्या तेरी आंखों में 
वो तेरे सच का सच नही घूमने आया था ।। 
...sVs...

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