पंख
बैठा बारव्हीं सीढ़ी पर ,भूला अपने आप को था /
ना था साथ किसी का ,बस दर्द का साथ था //
मै बैठा था , जिस सीढ़ी पर /
वो इस सफर का , आखिरी पायदान था //
उस दर्द भरी सीढ़ी पर
अनजान सी चहचहाट आ रही थी /
जाने वो नन्ही चिड़िया क्या बता रही थी //
अचनाक चमत्कार सा हुआ ,
वो बैठी हाथो में जब साक्षात्कार हुआ //
एक रस्सी कहूँ या डोर जिससे
उसने मुझे जकड सा लिया /
उसके इसी नादान प्रेम ने
मुझे पकड़ लिया //
उसकी चहचहाट मुझे भाने लगी थी /
लेकिन उसकी पंखो की उड़ान ,
उसे मुझसे दूर ले जाने लगी थी //
न डर था इस बात का ,
की वो दूर जा रही है /
डर था कि कहीं वो किसी के ,
जाल में तो नहीं फसती जा रही है //
मुझे पता था ,इस दुनिया में सब
भोले-भाले लोग ही नहीं बसते /
कुछ कुत्ते तो कुछ बाज तो कही गिद्ध
भी नजर गड़ाए हसते //
जाने क्या हुआ अब उसे घर में पड़ा ,
दाना ना सुहाता था /
क्या हुआ पता नहीं कुछ दिनों से ,
उसे ऊपर उड़ना जाया भाता था //
चाहता तो में भी था ,
वो आसमा को चीरकर ऊपर जाये /
लेकिन कही एक डर भी था ,
कही वो किसी जाल में न फस जाये //
वो अभी नादान थी ,दुनिया से अनजान थी
भले ही हमारी भी कुछ दिनों की पहचान थी //
लेकिन अब वो मेरी भी जान थी //
Ok
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